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(११६) ३. पवन धारणा दूसरी धारणा का अभ्यास होनेके पीछे यह सोचे कि मेरे चारों ओर पवन मण्डल घूम कर राख को उड़ा रहा है। उस मंडल में सब ओर स्वाय स्वाय लिखा है।
४. जल धारणा-तीसरी धारणा का अभ्यास होने पर फिर यह सोचे कि मेरे ऊपर काले मेघ आ गए और खूध पानी, बरसने लगा। यह पानी, लगे हुए कर्म मैल को घोकर आत्मा को स्वच्छ कर रहा है। पपपप जल मंडल पर सब ओर लिखा है।
५. तत्व रूपवती धारणा-चौथी का अभ्यास होजावे तब अपने को सर्व कर्म व शरीर रहित शुद्ध सिद्ध समान अमूर्तीक स्फटिकवत् निर्मल आकार देखता रहे, यह पिंडस्थ आत्मा का ध्यान है।
५५. पदस्थध्यान पदस्थ ध्यान भी एक भिन्न मार्ग है। साधक इच्छानु
स्वाय
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पपपपपप
स्वाय
स्वाय
पपपप
पपपपप
पपपप
स्वाय