________________
( १९२) तप बारह तरह का है जिसका पालन साधु महात्मा उत्तम प्रकार से करते है।*
५२. बारह तप इस तपके दो भेद है वाह्य और अन्तरङ्ग। जो प्रगट दीखें व जिसका असर शरीर पर मुख्यतासे पड़े वह वाह्य तप है व जिसका असर मुख्यता से भावो पर पड़े सो अन्त. रंग तप है। हर एक के छः छ भेद है:(१) वाह्यतप के छः भेद :---
(१) अनशन-खाद्य-जिस से पेट भरे; स्वाद्य-जो स्वाद सुधारे, इलायची आदि; लेह्य जो चाटने मे आवे, चटनी आदिः पेय जो पीने योग्यहो, जलादि इन चार प्रकारके आहार का जन्म पर्यंत या एक दो दिन आदि की मर्यादा से त्यागकर इन्द्रिय विषय और कषायोंसे अलग रहकर धर्मध्यान में लीन रहना सो अनशन है।
(२) अवमोदये-इन्द्रियों की लोलुपता कम करते हुए सदा आहार कम करना, जिससे "ध्यान व स्वाध्याय में आलस्य न हो।
(३) वृत्तिपरिसंख्यान-भोजन के लिये जाते हुए कोई प्रतिज्ञा लेलेना और बिना किसी के कहे हुए उसके अनु. सारं भोजन मिलने पर लेना नहीं तो उपवास करना; जैसे
* जह कालेण तवेण य भुत्तरसं कम्मपुग्गलं जेण । भावेण सडदि णेया तस्सडण चेदि गिजरा दुविहा ॥३६॥
(द्रव्यसंग्रह)
-