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वैसे कर्म वर्गणाओं का आना और उन का ठहरना जिस समय जो श्राव रुकता है उसी समय वह बन्ध भी रुकता है । जब छेद पानी आवेगा नहीं, तो नावमें ठहरेगा भी नहीं । ४१. कर्मों के फलं देने की रीति
कर्मों में जो स्थिति पड़ जाती है उस के भीतर ही वे अपना फल देकर गिरते जाते है। जिस समय कर्म वन्धते है उसके कुछ ही देर पीछे वे अपना फल देना प्रारभ करते हुए जहां तक मर्यादा पूरी न हो फल दिया करते हैं।
farart वर्गणाये जिस कर्म प्रकृति की बँधती हैं वे घट जाती हैं और थोड़ी २ हर समय फल प्रगटकर गिरती जाती हैं ! जिस समय तक फल नहीं देतीं उस समय का नाम
बाधा काल है । इस का हिसाब यह है कि यदि स्थिति एक कोड़ा कोडी सागर की बाँधी हो तो सौ वर्ष का
बाधा काल है । यदि श्रन्तः कोड़ा कोड़ी सागर की स्थिति हो जो एक करोड़ सागर से ऊपर है तो आवाधा केवल एक अन्तर्मुहुर्त आवेगी । यदि हज़ार सागर की हो व एक सागर की हो तो बहुत ही कम समय श्रायगा । कम से कम एक श्रावली ( पलक मारने के समान ) काल पीछे ही कर्म अपना फल दे सकेगे। जैन सिद्धांत में यह नियम नहीं है कि पूर्व जन्म का ही फल इस जन्म में हो व इस जन्म का आगे मैं हो। इस जन्म का बांधा कर्म इस जन्म में भी फल देता है व देता है व अगामी भी देगा व पूर्व जन्म में बांधा हुबा पहले भी फल देचुका है व अब भी दे रहा है व जब तक स्थिति पूरी न होगी देता रहेगा। यह बात ध्यान में रहे कि