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( ७ ) बोलना ३ शरीर को कुटिलता से व वक्रता से वर्ताना ४ कलह और लड़ाई करना। ११. शुभ नाम कर्म के भाव
१ मन में सीधापन रखना २ वचन सोधा हितकारी बोलना ३ कायको सरल कुटिलता रहित वर्ताना ४ झगड़ा न करके प्रेम रखना। १२. तीर्थङ्कर नाम कर्म के विशेष भाव
नीचे लिखी १६ प्रकार की भावनाओं को बड़े भाव से करना--
१.दर्शन विशुद्धि, हमारी श्रद्धा निर्मल रहे २. विनय. सम्पन्नता,हम धर्मव धर्मियों में श्रादर करें३. शील व्रतेवनतीचार, हम शील और व्रतों में दोष न लगावै ४. अभीक्ष्णमानोपयोग, हम सदा ज्ञानका अभ्यास करें ५ संवेग, हम संसार शरीर भोगों से वैराग्य रखें ६. शक्तितस्त्याग, हम शक्ति न छिपाकर दान करते रहें ७ शक्तिस्तप, हम शक्ति न छिपाकर तप करते रहें - साधुसमाधि, हम साधुओं का कष्ट दूर करते रहे है वैयावृत्य, हम गुणवानों की सेवा करते रहें १०. अहद्भक्ति, हम अरहन्तों को भक्तिपूजा में रत रहे ११. आचार्य भक्ति, हम गुरु महाराजो की भक्ति करते रहे १२. उपाध्याय भक्ति, हम ज्ञानदाता साधुओं की भक्ति में रत रहें १३. प्रवचन भक्ति, हम शास्त्र की भक्ति में दत्त चित्त रहे १४. श्रावश्यकापरिहाण, हम अपने नित्य धर्म कृत्य को न छोड़ें १५ मार्ग प्रभावना, हम सच्चे धर्म की उन्नति करते रहें १६. प्रवचनवात्सल्य, हम सर्व धर्मात्माओं से प्रेम रखें।