________________ 432 जैनदर्शन हो ?' जिससे प्रत्येक आत्माका अधिकार सुरक्षित रहे और ऐसी समाजका निर्माण संभव हो सके, जिसमें सबको समान अवसर और सबकी समानरूपसे प्रारम्भिक आवश्यकताओंकी पूर्ति हो सके। यह व्यवस्था ईश्वरनिर्मित होकर या जन्मजात वर्गसंरक्षणके आधारसे कभी नहीं जम सकती, किन्तु उन सभी समाजके घटक अंगोंकी जाति, वर्ण, रंग और देश आदिके भेदके बिना निरुपाधि समानस्थितिके आधारसे ही बन सकती है। समाजव्यवस्था ऊपरसे बदलनी नहीं चाहिये, किन्तु उसका विकास सहयोगपद्धतिसे सामाजिक भावनाकी भूमिपर होना चाहिये, तभी सर्वोदयी समाज-रचना हो सकती है। जैनदर्शनने व्यक्तिस्वातन्त्र्यको मूलरूपमें मानकर सहयोगमूलक समाजरचनाका दार्शनिक आधार प्रस्तुत किया है ! इसमें जब प्रत्येक व्यक्ति परिग्रहके संग्रहको अनधिकारवृत्ति मानकर ही अनिवार्य या अत्यावश्यक साधनोंके संग्रहमें प्रवृत्ति करेगा, सो भी समाजके घटक अन्य व्यक्तियोंको समानाधिकारी समझकर उनकी भी सुविधाका विचार करके ही; तभी सर्वोदयी समाजका स्वस्थ निर्माण संभव हो सकेगा। __ निहित स्वार्थवाले व्यक्तियोंने जाति, वंश और रंग आदिके नामपर जो अधिकारोंका संरक्षण ले रखा है तथा जिन व्यवस्थाओंने वर्गविशेषको संरक्षण दिये हैं, वे मूलतः अनधिकार चेष्टाएँ हैं। उन्हें मानवहित और नवसमाजरचनाके लिये स्वयं समाप्त होना ही चाहिये और समान अवसरवाली परम्पराका सर्वाभ्युदयकी दृष्टिसे विकास होना चाहिये / ___इस तरह अनेकान्तदृष्टि से विचारसहिष्णुता और परसन्मानकी वृत्ति जग जाने पर मन दूसरेके स्वार्थको अपना स्वार्थ माननेकी ओर प्रवृत्त होकर समझौतेकी ओर सदा झुकने लगता है। जब उसके स्वाधिकारके साथ-ही-साथ स्वकर्त्तव्यका भी भाव उदित होता है; तब वह दूसरेके आन्तरिक मामलोंमें जबरदस्ती टाँग नहीं अड़ाता / इस तरह विश्वशान्तिके लिये अपेक्षित विचारसहिष्णुता, समानाधिकारकी स्वीकृति और आन्तरिक मामलोंमें अहस्तक्षेप आदि सभी आधार एक व्यक्तिस्वातन्त्र्यके मान लेने से ही प्रस्तुत हो जाते हैं / और जब तक इन सर्वसमतामूलक अहिंसक आधारोंपर समाजरचनाका प्रयत्न न होगा, तब तक विश्वशान्ति स्थापित नहीं हो सकती / आज मानवका दृष्टिकोण इतना विस्तृत, उदार और व्यापक हो गया है जो वह विश्वशान्तिकी बात सोचने लगा है। जिस दिन व्यक्तिस्वातन्त्र्य और समानाधिकारकी बिना किसी विशेषसंरक्षणके सर्वसामान्यप्रतिष्ठा होगा, वह दिन मानवताके मंगलप्रभातका पुण्यक्षण होगा। जैनदर्शनने इन आधारोंको सैद्धान्तिक रूप देकर मानवकल्याण और जीवनकी मंगलमय निर्वाहपद्धतिके Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org