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जैनदर्शन
स्वतः सिद्ध न्यायाधीश वाचनिक अहिंसा : स्याद्वाद स्यात् एक प्रहरी स्यात्का अर्थ शायद नहीं अविवक्षितका सूचक 'स्यात्' धर्मज्ञता और सर्वज्ञता
४३ निर्मल आत्मा स्वयं प्रमाण ४४ निरीश्वरवाद ४४ कर्मणा वर्णव्यवस्था ४५ अनुभवकी प्रमाणता ४५ साधनकी पवित्रताका आग्रह ४६ तत्त्वाधिगमके उपाय
४. लोकव्यवस्था ५३-१००
जैनी लोकव्यवस्थाका मूल मन्त्र परिणमनोंके प्रकार परिणमनका कोई अपवाद नहीं धर्मद्रव्य अधर्मद्रव्य आकाशद्रव्य कालद्रव्य निमित्त और उपादान कालवाद स्वभाववाद नियतिवाद आ० कुन्दकुन्दका अकर्तृत्ववाद पुण्य और पाप क्या ? गोडसे हत्यारा क्यों ? एक ही प्रश्न एक ही उत्तर कारणहेतु नियति एक भावना है कर्मवाद कर्म क्या है ? कर्मविपाक यदृच्छावाद पुरुषवाद ईश्वरवाद
५३ भूतवाद ५४ अव्याकृतवाद ५५ उत्पादादित्रयात्मक परिणामवाद ५६ दो विरुद्ध शक्तियाँ ५६ लोक शाश्वत है ५६ द्रव्ययोग्यता और पर्याययोग्यता ५७ कर्मकी कारणता ५८ जड़वाद और परिणामवाद ६२ जड़वादका आधुनिक रूप ६२ जड़वादका एक और स्वरूप ६३ विरोधिसमागम अर्थात् उत्पाद ६८ और व्यय ७१ चेतनसृष्टि ७१ समाजव्यवस्थाके लिये ७२ जड़वादी अनुपयोगिता ७३ समाजव्यवस्थाका आधार समता ९३ ७३ जगत्स्वरूपके दो पक्ष : १. भौतिक७४ वाद और २. विज्ञानवाद ९४ ७५ लोक और अलोक ७७ लोक स्वयं सिद्ध है ८० जगत् पारमार्थिक और स्वतः ८० सिद्ध है
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