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षद्रव्य विवेचन
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स्कन्ध आदि चार भेद :
'पुद्गल द्रव्यके स्कन्ध, स्कन्धदेश, स्कन्धप्रदेश और परमाणु ये चार विभाग भी होते हैं । अनन्तानन्त परमाणुओंसे स्कन्ध बनता है, उससे आधा स्कन्धदेश और स्कन्धदेशका आधा स्कन्धप्रदेश होता है। परमाणु सर्वतः अविभागी होता है । इन्द्रियाँ, शरीर, मन, इन्द्रियोंके विषय और श्वासोच्छ्वास आदि सब कुछ पुद्गल द्रव्यके ही विविध परिणमन हैं। बन्धकी प्रक्रिया: ___इन परमाणुओंमें स्वाभाविक स्निग्धता और रूक्षता होनेके कारण परस्पर बन्ध होता है, जिससे स्कन्धोंकी उत्पत्ति होती है। स्निग्ध और रूक्ष गुणोंके शक्त्यंशकी अपेक्षा असंख्य भेद होते हैं, और उनमें तारतम्य भी होता रहता है । एक शक्त्यंश ( जघन्यगुण ) वाले स्निग्ध और रूक्ष परमाणुओंका परस्पर बन्ध (रासायनिक मिश्रण ) नहीं होता। स्निग्ध और स्निग्ध, रूक्ष और रूक्ष, स्निग्ध और रूक्ष, तथा रूक्ष और स्निग्ध परमाणुओंमें बन्ध तभी होगा, जब इनमें परस्पर गुणोंके शक्त्यंश दो अधिक हों, अर्थात् दो गुणवाले स्निग्ध या रूक्ष परमाणुका बन्ध चार गुणवाले स्निग्ध या रूक्ष परमाणुसे होगा। बन्धकालमें जो अधिक गुणवाला परमाणु है, वह कम गुणवाले परमाणुका अपने रूप, रस, गन्ध और स्पर्श रूपसे परिणमन करा लेता है। इस तरह दो परमाणुओंसे द्वय णुक, तीन परमाणुओंसे व्यणुक और चार, पाँच आदि परमाणुओंसे चतुरणुक, पञ्चाणुक आदि स्कन्ध उत्पन्न होते रहते हैं। महास्कन्धोंके भेदसे भी दो अल्पस्कन्ध हो सकते हैं। यानी स्कन्ध, संघात और भेद दोनोंसे बनते हैं। स्कन्ध अवस्थामें परमाणुओंका परस्पर इतना सूक्ष्म परिणमन हो जाता है कि थोड़ी-सी जगहमें असंख्य परमाणु समा जाते हैं । एक सेर रूई और एक सेर लोहेमें साधारणतया परमाणुओंकी संख्या बराबर होने पर भी उनके निविड और शिथिल बन्धके कारण रूई थुलथुली है और लोहा ठोस । रूई अधिक स्थानको रोकती है और लोहा कम स्थानको। इन पुद्गलोंके इसी सूक्ष्म परिणमनके कारण असंख्यातप्रदेशी लोकमें अनन्तानन्त परमाणु समाए १. 'खंधा य खंधदेसा खंधपदेसा य होति परमाण । इति ते चदुब्बियप्पा पुग्गलकाया मुणेयव्वा ॥'
-पञ्चास्तिकाय गा० ७४-७५ । २. "शरीरवाङ्मनःप्राणापानाः पुद्गलानाम् ।" ।
-तत्वार्थसूत्र ५।१९। ३. "स्निग्धरूक्षत्वाद् बन्धः । न जघन्यगुणानाम् । गुणसाम्ये सदृशानाम् । द्वयधिकादिगुणानां तु । बन्धेऽधिको पारिणामिकौ च ।"
-तत्त्वार्थसूत्र ५।३३-३७ ।
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