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चक्रवर्ती - आर्य - खण्ड आदि छह खण्डो के अधिपति और बत्तीस हजार राजाओ के स्वामी को चक्रवर्ती कहते हैं। ये नौ निधियो और चौदह रत्नो के स्वामी होते हैं।
चक्षु - इन्द्रिय- जिसके द्वारा ससारी जीव पदार्थों को देखता है उसे चक्षु इन्द्रिय कहते है |
चक्षुदर्शन-चक्षु इन्द्रिय के द्वारा पदार्थ का ज्ञान होने से पूर्व जो सामान्य प्रतिभास होता है वह चक्षुदर्शन है।
चतुरिन्द्रिय-जीव - जिनके स्पर्शन, रसना, घ्राण और चक्षु ये चार इन्द्रिया होती हैं वे चतुरिन्द्रिय जीव कहलाते हे। जैसे- मक्खी, भौरा आदि। चतुर्दशपूर्वी - जो साधु सपूर्ण आगम अर्थात् ग्यारह अङ्ग व चौदह पूर्व मे पारगत है और श्रुतकेवली कहलाते है उनके चतुर्दशपूर्वी नामक बुद्धि ऋद्धि होती है।
चतुर्मुखपूजा- राजाओ द्वारा जो सर्व कल्याणकारी महायज्ञ किया जाता है उसे चतुर्मुखपूजा कहते है। इसे सर्वतोभद्र पूजा भी कहते है । चतुर्विंशतिस्तव - जिसमे चौवीस तीर्थकरो की वदना करने की विधि, उनके नाम, सस्थान, ऊचाई, पाच कल्याणक, चौंतीस अतिशयो के स्वरूप और वदना की सफलता का वर्णन किया गया है वह चतुर्विंशतिस्तव नाम का अङ्ग-बाह्य कहलाता है।
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चतुर्विध- संघ-मुनि, आर्यिका श्रावक और श्राविका इन चारो के समुदाय को चतुर्विध सघ कहते है ।
92 / जैनदर्शन पारिभाषिक कोश