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घडी-चौवीस मिनिट की एक घडी होती है। दो घडी का एक मुहूर्त
और तीस मुहूर्त का एक दिन-रात होता है। घातिया-कर्म-जीव के गुणो का घात करने वाले अर्थात् गुणो को ढकने वाले या विकृत करने वाले ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, अन्तराय और मोहनीय इन चार कर्मों को घातिया-कर्म कहते है। घृतस्रावी ऋद्धि-जिस ऋद्धि के प्रभाव से साधु के हाथ में दिया गया रूखा-सूखा आहार तत्काल घी के समान रसवाला हो जाता है उसे घृतस्रावी या सर्पिस्रावी ऋद्धि कहते है। घोरतप ऋद्धि-जिस ऋद्धि के प्रभाव से ज्वर आदि से पीडित होने पर भी साधु अत्यन्त कठिन तप करने में सक्षम होते हे वह घोर तप ऋद्धि है। घोर-पराक्रम-तप ऋद्धि-जिस ऋद्धि के प्रभाव से साधु अनुपम तप करते हुए तीन लोक के सहार की शक्ति से सपन्न और सहसा समुद्र के जल को सुखा देने की सामर्थ्य से युक्त होते है वह घोर पराक्रम-तप-ऋद्धि है। घोर-ब्रह्मचर्य-तप ऋद्धि-जिस ऋद्धि के प्रभाव से साधु सब गुणो से सपन्न होकर अखण्ड ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं, उसे घोर-ब्रह्मचर्य-तप ऋद्धि कहते हैं। इसके प्रभाव से साधु के समीप चौरादिक की बाधाएं और महायुद्ध आदि नहीं होते। घ्राण-इन्द्रिय-जिसके द्वारा ससारी जीव गध का ज्ञान करते हैं उसे घ्राण-इन्द्रिय कहते है।
जैनदर्शन पारिभाषिक कोश / 91