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________________ अकाम-निर्जरा-अपनी इच्छा के विना इन्द्रिय-विषयो का त्याग करने पर तथा परवश होकर भोग-उपभोग का निरोध होने पर उसे शान्ति से सह लेना, इससे जो कर्मों की निर्जरा होती हे उसे अकाम-निर्जरा कहते है। अकाल मृत्यु-विषभक्षण आदि किसी वाह्य कारण के मिलने पर समय से पहले ही आयु का क्षीण हो जाना अकाल मृत्यु हे। इसे कदलीघातमरण भी कहते हैं। अकृत्रिम-चैत्यालय-देखिए चैत्यालय। अक्षमृक्षणवृत्ति-जेसे व्यापारी लोग कीमती सामान से भरी गाडी मे साधारण सा तेल आदि चिकना पदार्थ डालकर उसे आसानी से ले जाते है इसी प्रकार साधु भी रलवय से युक्त शरीर रूपी गाडी मे सरस या नीरस आहार डालकर उसे आसानी से मोक्षमार्ग पर ले जाते है, इसलिए साधु की यह आहारचर्या अक्षमृक्षणवृत्ति कहलाती है। अक्षिप्र अवग्रह-वस्तु को शने शनै देर से जान पाना अक्षिप्र अवग्रह है। अक्षीण-महानस ऋद्धि-जिस ऋद्धि के प्रभाव से मुनि के द्वारा आहार ग्रहण कर लेने के उपरान्त उस रसोईघर मे वचा शेष आहार अनगिनत लोगोको खिला देने पर भी समाप्त नहीं होता वह अक्षीण-महानस-ऋद्धि कहलाती है। अक्षीण-महालय ऋद्धि-जिस ऋद्धि के प्रभाव से मुनि के समीप अल्प जैनदर्शन पारिभाषिक कोश / 1
SR No.010043
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherKshamasagar
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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