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परक्षेत्र परिवर्तन । स्वक्षेत्र परिवर्तन-कोई जीव सूक्ष्म निगोदिया की जघन्य अवगाहना से उत्पन्न हुआ और अपनी आयु पूर्ण करके मर गया फिर वही जीव एक प्रदेश अधिक अवगाहना लेकर उत्पन्न हुआ ओर आयु पूर्ण करके मर गया। इस प्रकार एक-एक प्रदेश अधिक की अवगाहनाओ को धारण करते-करते महामत्स्य की उत्कृष्ट अवगाहना पर्यन्त अनेक अवगाहना धारण करता है। इस प्रकार छोटी अवगाहना से लेकर वडी अवगाहना पर्यन्त सब अवगाहनाओ को धारण करने मे जितना काल लगता हे उसे स्वक्षेत्र परिवर्तन कहते है। परक्षेत्र परिवर्तन-जिसका शरीर आकाश के सबसे कम प्रदेशो पर स्थित हे ऐसा एक सूक्ष्म निगोदिया लब्ध्यपर्याप्तक जीव लोक के आठ मध्यप्रदेशो को अपने शरीर के आठ मध्य प्रदेश बनाकर उत्पन्न हुआ ओर आयु पूर्ण करके मर गया फिर वही जीव पुन उसी अवगाहना से वहा दूसरी बार उत्पन्न हुआ, तीसरी बार उत्पन्न हुआ, इस प्रकार अङ्गुल के असख्यातवे भाग मे आकाश के जितने प्रदेश हे उतनी वार वही उत्पन्न हुआ। पुन उसने आकाश का एक-एक प्रदेश वढाकर सब लोक को अपना जन्म क्षेत्र बनाया। इस प्रकार यह सब मिलकर एक परक्षेत्र परिवर्तन होता है। तात्पर्य यह है कि क्षेत्र परिवर्तन रूप ससार में अनेक वार भ्रमण करता हुआ जीव तीनो लोक में ऐसा कोई भी स्थान नहीं है जहा पर अनेक अवगाहनाओ के साथ उत्पन्न न हुआ हो। क्षेत्र-पूजा-तीर्थंकरो के गर्भ, जन्म, आदि पच-कल्याणक जहा-जहा हुए हे उन स्थानों की विधिपूर्वक पूजा करना क्षेत्र-पूजा है। क्षेत्र-विपाकी-जिन कर्मों का विपाक अर्थात् फल विग्रह गति के रूप
जेनदर्शन पारिभाषिक कोश / 83