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कल्पवासी-देव-इन्द्र सामानिक आदि भेद युक्त देव जहा रहते हे उसे कल्प कहते है। अत कल्प मे उत्पन्न होने वाले देवो को कल्पवासी देव कहा जाता है। सभी सोलह स्वर्गों के देव कल्पवासी हैं। कल्पवृक्ष-जो जीवो को अपनी-अपनी मनवांछित वस्तुए दिया करते हे वे कल्पवृक्ष कहलाते हे। भोगभूमि मे पानाग, तूर्याग, भूषणाग, वस्त्राग, भोजनाग, आलयाग, दीपाग, भाजनाग, मालाग और तेजाग आदि कल्पवृक्ष होते । कल्पातीत-देव-इन्द्र सामानिक आदि भेद से रहित देव कल्पातीत-देव कहलाते हे । सोलह स्वर्ग से ऊपर नो ग्रैवेयक, नो अनुदिश ओर पाच अनुत्तर विमानो मे सभी कल्पातीत-देव है। कल्प्यव्यवहार-जिसमे साधुओ के योग्य आचरण का ओर अयोग्यआचरण होने पर प्रायश्चित विधि का वर्णन हे वह कल्प्यव्यवहार नामक अङ्गवाह्य श्रुत है। कल्प्याकल्प्य-"द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा मुनियो के लिए यह योग्य है, और यह अयोग्य हे",-इस तरह इन सबका वर्णन करने वाला कल्प्याकल्प नामक अङ्गबाह्य श्रुत है। कल्याणक-तीर्थकरो के जीवन मे पाच प्रसिद्ध अवसर ऐसे आते हैं जो जगत् के लिए कल्याणकारी होते हे इन्हे ही पचकल्याणक कहते हैं। गर्भ-कल्याणक,जन्म-कल्याणक, दीक्षा-कल्याणक, ज्ञान-कल्याणक
और माक्ष-कल्याणक-ये पाच कल्याणक हे । भरत ओर ऐरावत क्षेत्र मे पाचो कल्याणक वाले तीर्थकर उत्पन्न होते है। विदेह क्षेत्र मे दो या तीन कल्याणक वाले तीर्थकर भी होते है। 68 / जैनदर्शन पारिभाषिक कोश