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करुणा-दान-दीन-दुखी जीवो को दयापूर्वक यथायोग्य आहार औषध आदि देना करुणा-दान या दया-दत्ति कहलाता है। करेण-किचित्-ग्रहण-आहार के समय यदि साधु अपने हाथ से कुछ उठा लेता है तो यह करेण-किचित्-ग्रहण नाम का अन्तराय कहलाता है। कर्म-जीव मन वचन काय के द्वारा प्रतिक्षण कुछ न कुछ करता है वह सब उसकी क्रिया या कर्म है। कर्म के द्वारा ही जीव परतत्र होता है और ससार मे भटकता है। कर्म तीन प्रकार के हैं-द्रव्य-कर्म, भाव-कर्म और नो-कर्म। कर्म-चेतना-ऐसा अनुभव करना कि 'इसे मैं करता हूँ'-यह कर्म-चेतना है। वास्तव मे, जीव का स्वभाव मात्र जानना देखना है पर कर्म से युक्त जीव 'पर' वस्तुओं मे करने-धरने रूप विकल्प करता है यही कर्म-चेतना है। कर्मप्रवाद-जिसमे कर्मो की बध, उदय, उपशम आदि विविध अवस्थाओ का और स्थिति आदि का वर्णन है वह कर्म-प्रवाद-पूर्व नाम का आठवा पूर्व है। कर्मफल-चेतना-ऐसा अनुभव करना कि 'इसे मैं भोगता हू' यह कर्मफल-चेतना है। अज्ञानी ससारी जीव इन्द्रिय-जनित सुख-दुख में तन्मय होकर 'सुखी या दुखी'-ऐसा अनुभव करता है यही कर्म-फल-चेतना है। कर्मभूमि-जहा के निवासी खेती, व्यापार आदि कर्म करके अपनी
66 / जैनदर्शन पारिभाषिक कोश