________________
पदार्थो को जानना एकविध-अवग्रह है। जैसे-गेहू, चावल आदि एक प्रकार के धान्य को जानना। एकान्त-मिथ्यात्व-तत्त्व के विषय में 'यही है, इस प्रकार का है'-ऐसा भ्रान्त और एकान्त अभिप्राय या आग्रह रखना एकान्त मिथ्यात्व है। जैसे-जीव सर्वथा नित्य ही है या अनित्य ही है-ऐसा मानना। एकावग्रह-किसी एक पदार्थ को जानना एकावग्रह है। जैसे-अनेक शब्दो मे से किसी एक शब्द को जानना। एकेन्द्रिय-जिसके एकमात्र स्पर्शन इन्द्रिय है वह एकेन्द्रिय जीव है। वनस्पति, जल, वायु आदि सभी स्थावर जीव एकेन्द्रिय है। एलाचार्य-गुरु के पश्चात् जो श्रेष्ठ साधु सघस्थ अन्य साधुओ को मार्गदर्शन देता है उसे अनुदिश अर्थात् एलाचार्य कहते है। एवंभूत-नय-जो वस्तु जिस पर्याय को प्राप्त हुई है उसी रूप निश्चय करने वाले या नाम देने वाले नय को एवभूत-नय कहते है। आशय यह है कि जिस शब्द का जो वाच्य हे उस रूप क्रिया करते समय ही उस शब्द का प्रयोग करना ठीक है अन्य समयो मे नहीं। जैसे-जिस समय आज्ञा या ऐश्वर्यवान् हो उस समय ही इन्द्र है, पूजा या अभिषेक करने वाला इन्द्र नहीं कहलाएगा। एषणा-समिति-जीवन पर्यन्त सुकुल श्रावक के द्वारा दिया गया निर्दोष और प्रासुक आहार समतापूर्वक ग्रहण करने की प्रतिज्ञा लेना एषणा-समिति है। यह साधु का एक मूलगुण है।
जैनदर्शन पारिभाषिक कोश / 61