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पुन अपने स्थान में लौट आता है इसे आहारक- समुद्घात कहते है। आहार-सज्ञा-अन्नादि आहार ग्रहण करने की इच्छा होना आहारसज्ञा है। आह्वानन-आमत्रण । भावो की एकाग्रता के लिए पूजा के प्रारंभ मे जिनेन्द्र भगवान को हृदय मे आमंत्रित करते है, उसी के प्रतीक रूप पुष्पक्षेपण करना आह्वानन कहलाता है।
जेनदर्शन पारिभाषिक कोश / 45