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का कथन करना असद्भूत व्यवहार नय का विषय है। इसके दो भेद है-अनुपचरित असद्भूत और उपचरित असद्भूत । असंख्यात-गणनातीत राशि असख्यात कहलाती है। असंज्ञी-बिना मन वाले जीव असज्ञी कहलाते है। ये शिक्षा, उपदेश आदि ग्रहण करने में असमर्थ होते है। असज्ञी, असैनी और अमनस्क ये एकार्थवाची है। असंप्राप्तासृपाटिका-सहनन-जिस कर्म के उदय से शरीर मे हड्डिया परस्पर मात्र नसो के द्वारा जुडी रहती है वह असप्राप्तासृपाटिका-सहनन नामकर्म कहलाता है। असातावेदनीय-जिस कर्म के उदय मे जीव अनेक प्रकार के दुख का वेदन करता है उसे असातावेदनीय-कर्म कहते है। अस्तिकाय-जो बहुप्रदेशी है वे अस्तिकाय कहलाते है। जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और आकाश-ये पाच अस्तिकाय है। अस्तित्व-प्रत्येक द्रव्य की अनादि-अनन्त सत्ता ही उसका अस्तित्व गुण है। यह द्रव्य का सामान्य गुण है। अस्तिनास्ति-प्रवाद-पूर्व-जिसमे पाच अस्तिकायो का और विविध नयो का अस्ति, नास्ति आदि अनेक पर्यायो के द्वारा वर्णन किया गया है वह अस्ति-नास्ति-प्रवाद-पूर्व नाम का चौथा पूर्व है। अस्थिर-नामकर्म-जिस कर्म के उदय से थोडी भी भूख-प्यास की बाधा होने पर तथा सर्दी या गर्मी की अधिकता होने पर शरीर मे दुर्बलता का अनुभव होता है उसे अस्थिर-नामकर्म कहते है।
जैनदर्शन पारिभाषिक कोश / 33