________________
विपुल यमव था। शरद ऋतु के मगा का अकस्मात विलय हातं दखकर इन गग्य आ आ अपन पुत्र को राज्य देकर इन्हानं जिनदीक्षा ननी। माना की टिन तपस्या क उपरान्त इन्हें कंवलज्ञान नानक गाम्मरण मनास गणधर, पचास हजार मुनि, साठ हजार
आविताना माठामार श्रीवका तीन लाख थाविकाए शौ। ना गम्मद-शिखर में मांस पाप्त किया। अव-पाय- मृत्य, शब्दो के दाग नहीं की जा सकती आर जाण-भणम बनती। यह अध-पयाय है। यह प्रत्येक द्रव्य में प्रतिक्षग हानी गनी। अर्य-समय-नयन क निमित मशात हुए समस्त पदार्थों के समूह को अय-ममग्रजाना।
अर्वनराम्यग्दर्शन-आगम को पटें बिना ही उसमें प्रतिपादित अर्थ या भाव को जानकर जा सम्यग्दर्शन हाता है उस अर्थ-सम्यग्दर्शन
अयांचार-शास्त्र में कह गए अनेकात स्वरूप को ठीक-ठीक समझना अयाचार या अर्थ शुद्धि है। अर्यावग्रह-देखिए अवग्रह। अर्द्धनाराय-सहनन-जिस कर्म के उदय से शरीर मे हडियो की संधिया परस्पर नाराच अर्थात् कील के द्वारा आधी ही जुड़ी होती है वह अर्द्ध-नाराच सहनन नामकर्म कहलाता है। अर्द्ध-पुद्गल-परावर्तन-देखिए द्रव्य-परिवर्तन
26 / जैनदर्शन पारिभाषिक कोश