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________________ सूक्ष्म-साम्पराय-सूक्ष्म कषाय को सूक्ष्म-साम्पराय कहते है। जिस चारित्र मे कपाय अति सूक्ष्म हो जाती है वह सूक्ष्म-साम्पराय-चारित्र है। मोहकर्म का उपशमन या क्षपण करने वाले जिस साधु के मात्र सज्वलन-लोभ रूप सूक्ष्म कषायशेष रह जाती है वह सूक्ष्म-साम्पराय-सयत कहलाता है। सूक्ष्म-सूक्ष्म-पुद्गल के मात्र दो परमाणु रूप स्कध को सूक्ष्म-सूक्ष्म कहते है। सूक्ष्म-स्थूल-जो आख से दिखाई नहीं देते किन्तु शेष चार इन्द्रियो से ग्रहण किये जा सकते है ऐसे स्कन्धो को सूक्ष्म-स्थूल कहते है। जैसे-वायु, शब्द, गन्ध आदि। सूतक-लोक व्यवहार में जन्म-मरण के निमित्त से हुई अशुद्धि के शोधन को सूतक कहते है। सूतक काल मे देव-पूजा, आहार-दान आदि कार्य नहीं किया जाता। सूत्र-1 जो ग्रन्थ, तन्तु ओर व्यवस्था इन तीन अर्थो को सूचित करता हे उसे सूत्र कहते है। या जो भले प्रकार से अर्थ को सूचित करे उस बहुअर्थ गर्भित रचना को सूत्र कहा जाता है। 2 ‘जीव अकर्ता ही है', 'अभोक्ता ही है', 'सर्वगत ही है' इत्यादि कल्पनायुक्त तीन सो तिरेसठ मिथ्या मतो का जिसमे वर्णन किया गया है वह सूत्र नाम का दृष्टिवाद अङ्ग का एक भेद है। सूत्रकृताङ्ग-'क्या कल्प हे और क्या अकल्प है' तथा छेदोपस्थापना आदि व्यवहार धर्म की क्रियाओ का जिसमे वर्णन है वह सूत्रकृताङ्ग है। जैनदर्शन पारिभाषिक कोश / 261
SR No.010043
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherKshamasagar
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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