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________________ व्यतीत करत है। चार काडाकोडी सागर प्रमाण इस प्रथम काल म शरीर की ऊचाड, आय, वन आदि उत्तरात्तर घटते जाते है। उत्सर्पिणी के सुपमा-सुपमा नामक इस छठव काल मे शेप समी वातं अवसर्पिणी के सुपमा-सुपमा नामक प्रथम काल के समान होती है। विशेषता यह ह कि उन्मर्पिणी-काल म आय, वल,ऊचाई आदि उत्तरोत्तर वढती जाती है। सुस्वर-नामकर्म-जिस कर्म क उदय से मधुर आवाज या सुरीला कठ पाप्न होता है उसे सुस्वर-नामकर्म कहते है। सूक्ष्म-1 जा परस्पर और अन्य स्थूल म्कधी के साथ व्याघात या वाधा को प्राप्त नही होत हे वे सूक्ष्म-म्कय है जैसे कर्म वर्गणा आदि । 2 जिनकी गति का जल, स्थल आदि के द्वारा प्रतिघात नहीं होता व सूक्ष्म-जीव है। सूक्ष्मक्रियाअप्रतिपाती-यह शुक्ल ध्यान की तीसरी अवस्था है। जिन्होंने द्वितीय शुक्ल ध्यान के द्वारा चार घातिया कर्मो का क्षय करके केवलज्ञान प्राप्त कर लिया है ऐसे केवली भगवान जव आयु का अन्तमुहूर्त काल शेप रहता हे तव सव प्रकार के वचनयोग, मनोयोग ओर वादर काययोग का निरोध करके सूक्ष्म काययोग का आलवन लेकर जो ध्यान करते हे वह सूक्ष्मक्रियाअप्रतिपाती-ध्यान है। सूक्ष्मत्व-इन्द्रिय गोचर न होना सूक्ष्मत्व गुण है। यह सिद्धो के आठ मूलगुणी में एक हे जो नामकर्म के क्षय होने पर प्रगट होता है। सूक्ष्म-नामकर्म-जिसके उदय से जीव को सूक्ष्म शरीर प्राप्त होता हे उसे सूक्ष्म नामकर्म कहते है। 260 / जेनदर्शन पारिभाषिक कोश
SR No.010043
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherKshamasagar
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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