________________
स दीक्षा लकर आर्यिका का पद पाया।
सुपार्श्वनाय-सातव तीथकर । वाराणसी नगर्ग क राजा सुप्रतिष्ठ की रानी पृथिवीपणा क यहा इनका जन्म हुआ। इनकी आयु वीस लाख वप पृव की थी। शरीर दा मा धनुप ऊचा था। शरीर का वर्ण प्रियगु पुष्प के समान था। एक दिन अचानक इन्हें वैराग्य हुआ और जिनटीक्षा ले लो। नो वर्प को कठिन तपस्या के उपरान्त इन्हें कवलतान हुआ। इनके सघ में पचानव गणघर, तीन लाख मुनि, तीन लाख तीस हजार आर्यिकाए, तीन लाख श्रावक और पाच लाख श्राविकाए थी। इन्होंने सम्मेदशिखर से माक्ष प्राप्त किया।
सुभग-नामकर्म-जिस कम के उदय से अन्यजन प्रीतिकर अवस्था प्राप्त होतो हे वह सुमग-नामकर्म है। अथवा स्त्री और पुरुषों के मोभाग्य का उत्पन्न करनेवाला समग-नामकर्म है।
सुमतिनाथ-पाचव तीर्थकर । आयोध्या नगरी के राजा मेघरथ ओर रानी मगला के यहा जन्म लिया। इनकी आयु चालीस लाख वर्ष पूर्व थी। शरीर तीन मो धनुष ऊचा ओर स्वर्ण के समान कान्तिवाला था। राज्य करते हुए एक दिन अचानक इन्हे वैराग्य उत्पन्न हुआ
और जिनदीक्षा ले ली। वीस वप को कठिन तपस्या के उपरान्त इन्हें केवलज्ञान हुआ। इनके सघ मे एक सो सोलह गणधर, तीन लाख वोस हजार मुनि, तीन लाख तीस हजार आर्यिकाए, तीन लाख श्रावक
और पाच लाख श्राविकाए थी। इन्होंने सम्मेदशिखर से मोक्ष प्राप्त किया।
250 / जैनदर्शन पारिभाषिक कोश