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ही समतामय हे फिर भी वह सदा समता रूप सामायिक चारित्र का पालन करता हुआ प्रतिदिन सध्याकालो मे सामायिक नामक आवश्यक को विधिवत सम्पन्न करता है । नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के भेद से सामायिक छह प्रकार की हे । सामायिक प्रतिदिन सुबह, दोपहर और शाम इन तीनो सध्याकालो मे कम से कम दो घडी अर्थात् अडतालीस मिनिट और अधिकतम छह घडी तक की जाती है । सामायिक का प्रारभ और समापन करते समय प्रत्येक दिशा मे तीन-तीन आवर्त, एक-एक प्रणाम व एक-एक कायोत्सर्ग करना चाहिए तथा पूर्व या उत्तरमुख करके खडे होकर या बैठकर प्रसन्नतापूर्वक सामायिक करना चाहिए।
सामायिक चारित्र - सर्व सावद्य योग से निवृत्त होना और सदा समता भाव रखना सामायिक चारित्र है ।
सामायिक प्रतिमा - व्रत- प्रतिमा नामक दूसरी प्रतिमा धारण करने के उपरान्त विधिपूर्वक तीनो सध्याओ मे सामायिक करने की प्रतिज्ञा लेना यह श्रावक की तीसरी सामायिक प्रतिमा कहलाती है ' सामायिक-त- प्रतिदिन सध्याकालो मे कम से कम दो घडी पर्यन्त समस्त पाप कार्यो का त्याग करके पचपरमेष्ठी का चिन्तन करने की प्रतिज्ञा लेना सामायिक नाम का शिक्षाव्रत है ।
सामायिक - श्रुत-समता-भाव के विधान का वर्णन करने वाला सामायिक नाम का अङ्गबाह्य श्रुत है ।
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साम्परायिक-आस्रव-सम्पराय का अर्थ कषाय हे । कषाय सहित होने वाले आस्रव को साम्परायिक - आस्रव कहते है ।
254 / जेनदर्शन पारिभाषिक कोश