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समवायाङ्ग - जिसमे पदार्थो की समानता के आधार पर समवाय का विचार किया गया है वह समवायाङ्ग है। जैसे धर्म द्रव्य, अधर्म द्रव्य, लोकाकाश और एक जीव के समान रूप से असख्यात - प्रदेश होने के कारण समानता के आधार पर इन सबका द्रव्य रूप से समवाय कहा जाता है । इसी प्रकार यथायोग्य क्षेत्र, काल व भाव रूप समवाय भी जानना चाहिए ।
समाचार - साधुओ के द्वारा परस्पर जो विनय आदि व्यवहार किया जाता है उसे समाचार या समाचारी कहते है। अथवा सभी साधुओ का जो एक समान अहिसा आदि रूप आचरण है उसे समाचार कहते है । समादान - क्रिया-सयमी का असयम के अभिमुख होना समादान-क्रिया है ।
समाधि - वीतराग-भाव से आत्मा का ध्यान करना समाधि है । अथवा समस्त विकल्पो का नष्ट हो जाना परम समाधि है ।
समाधिमरण - देखिए सल्लेखना ।
समारम्भ-कार्य के योग्य साधनो को इकट्ठा करना समारम्भ है ।
समिति - प्राणियो को पीडा न पहुचे ऐसा विचार कर दया भाव से सावधानीपूर्वक सभी प्रवृत्ति करना समिति कहलाती है। ईर्ष्या, भाषा, एषणा, आदान-निक्षेपण और प्रतिष्ठापन - ये पाच समितिया है ।
समुद्घात - वेदना आदि के निमित्त से मूल शरीर को नहीं छोड़ते हुए जो जीव के कुछ आत्म-प्रदेश शरीर से बाहर निकलते हे उसे समुद्घात कहते है । समुद्घात सात प्रकार का है - केवली - समुद्घात, वेदना
जैनदर्शन पारिभाषिक कोश / 241