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वेदक-सम्यक्त्व-दर्शन-मोहनीय कर्म की सम्यक्त्व प्रकृति के उदय से जो तत्वार्थ-श्रद्धान होता हे वह वेदक सम्यक्त्व कहलाता है। इसे क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन भी कहते है। सम्यक्त्व-प्रकृति के उदय मे वेदक सम्यग्दृष्टि जीव शिथिल श्रद्धानी होता है और उसका सम्यग्दर्शन चल, मल और अगाढ दोष से युक्त होता रहता है। वेदना-आर्तध्यान-अनुभव करने का नाम वेदना है। 'वेदना' सुख-दुख दोनो रूप होती है पर यहा आर्तध्यान का प्रकरण होने से वेदना का अर्थ दुख है। रोगादि जनित वेदना के होने पर उसे दूर करने की सतत चिन्ता करना वेदना नाम का आर्तध्यान है। वेदना-भय-रोगादि जनित वेदना के उत्पन्न होने की आशका से जो भय होता है उसे वेदना-भय कहते है।
वेदना-समुद्घात-अत्यन्त तीव्र वेदना होने पर जो आत्मा के प्रदेश शरीर से बाहर फेल जाते है उसे वेदना-समुद्घात कहते है। वेदनीय कर्म-जिस कर्म के उदय से जीव सुख-दुख का वेदन अर्थात् अनुभव करता है उसे वेदनीय कर्म कहते है। यह दो प्रकार का है-साता-वेदनीय व असाता-वेदनीय। वैक्रियिक-शरीर-छोटा, वडा, हल्का, भारी अनेक प्रकार का शरीर वना लेना विक्रिया कहलाती है। विक्रिया ही जिस शरीर का प्रयोजन हे वह वैक्रियिक-शरीर कहलाता है। वेक्रियिक-शरीर उपपाद जन्म से पैदा होता हे तथा ऋद्धि से भी प्राप्त होता है। वैक्रियिक-समुद्घात-विक्रिया करने के लिए अर्थात् शरीर को छोटा,
जेनदर्शन पारिभाषिक कोश / 225