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________________ नोकषाय रूप से परिवर्तित करना विसयोजना कहलाती है। विस्तार - सम्यग्दर्शन- द्वादशाग रूप जिनवाणी मे वर्णित बारह अङ्ग और चौदह पूर्व को बहुत विस्तार से सुनकर जो सम्यग्दर्शन होता है वह विस्तार - सम्यग्दर्शन कहलाता है । विहायोगति - नामकर्म - विहायस् का अर्थ आकाश है। जिस कर्म के उदय से भूमि का आश्रय लेकर या भूमि का आश्रय लिए बिना भी जीवो का आकाश मे गमन होता है वह विहायोगति नामकर्म है । यह दो प्रकार का है- प्रशस्त और अप्रशस्त । हाथी, बैल, हस आदि की अच्छी चाल को प्रशस्त विहायोगति कहते है। ऊंट या सर्प आदि की अटपटी चाल को अप्रशस्त विहायोगति कहते है । वीतराग - आत्म-साधना के द्वारा जिन्होने राग-द्वेष को नष्ट कर दिया है उन्हे वीतराग कहते है । वीतराग- कथा - गुरु और शिष्य के बीच या रागद्वेष से विमुख विशेष विद्वानो के बीच तत्व के निर्णय होने तक जो चर्चा चलती है उसे वीतराग - कथा कहते है । वीतराग चारित्र - देखिए निश्चय - चारित्र । वीतराग- सम्यक्त्व - देखिए निश्चय - सम्यग्दर्शन । वीर्य - प्रवाद - जिसमे केवली भगवान की अनन्त शक्ति, इन्द्र आदि की ऋद्धिया, चक्रवर्ती, वलदेव आदि की सामर्थ्य और द्रव्य के लक्षण आदि का वर्णन किया गया है वह वीर्य - प्रवाद पूर्व नाम का तीसरा पूर्व है । वीर्याचार - अपनी शक्ति को न छिपाकर उत्साहपूर्वक तप आदि जैनदर्शन पारिभाषिक कोश / 223
SR No.010043
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherKshamasagar
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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