________________
वातवलय हे । सघन वायु का वलय घनवातवलय कहलाता है, जलमिश्रित वायु का वलय घनोदधि के नाम से जाना जाता है तथा विरल वायु का वलय तनुवातवलय कहलाता है। सबसे पहले घनोदधि वातवलय लोक का आधार है, उसे घेरे हुए घनवातवलय और उसके उपरात तनुवातवलय हे । इस तरह समूचा लोक तीन वातवलयो से घिरा है ओर अलोकाकाश के मध्य स्थित है ।
वात्सल्य - मुनि, आर्यिका श्रावक ओर श्राविका रूप साधर्मी जनो से गाय-बछडे के समान स्वाभाविक स्नेह रखना सम्यग्दृष्टि का वात्सल्यगुण हे ।
वादित्व - ऋद्धि-जिस ऋद्धि के प्रभाव से साधु, इन्द्र के समान ज्ञानवान् ओर वाद-विवाद करन में निपुण वाटी को भी युक्तियुक्त समाधान के द्वारा निरुत्तर करने में समर्थ हे उसे वादित्व - ऋद्धि कहते है |
वामन - सस्थान- जिस कर्म के उदय से जीव का वोना शरीर होता है वह वामन सस्थान हे ।
वायु काय - वायुकायिक जीवों से रहित वायु को वायुकाय कहते है। वायुकायिक- वायु ही जिसका शरीर हे उसे वायुकायिक जीव कहते है |
वायुजीव- जो जीव वायुकायिक में उत्पन्न होने के लिए विग्रह गति म जा रहा है उसे वायु जीव कहते है।
वारुणी - धारणा - मारुती धारणा के उपरात वह योगी इन्द्रधनुष, बिजली, गर्जनादि सहित मघां स भर हुए आकाश का चितन कर फिर जनदर्शन पारिभाषिक कोश / 215