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वर्णनामकर्म-जिसके उदय से शरीर मे श्वेत आदि वर्ण अर्थात् रग की उत्पत्ति होती है उसे वर्णनामकर्म कहते है। वर्ण पाच प्रकार के हे-श्वेत, पीत, रक्त, नील ओर कृष्ण वर्ण। वर्तना-द्रव्य मे प्रति समय होने वाले परिवर्तन मे जो सहकारी है उस वर्तना कहते है। यह काल-द्रव्य का उपकार है। वषट्-पूजा करते समय वषट् पद के द्वारा भगवान को अपने निकट स्थापित किया जाता है। यह एक वीज-पद हे। वशित्व-ऋद्धि-जिस ऋद्धि के प्रभाव से साधु जीवसमूह को वश में करके उनका मनचाहा आकार आदि वनाने में सक्षम होते हे वह वशित्व-ऋद्धि कहलाती है। वसतिका-साधुओ के ठहरने का स्थान वसतिका कहलाता है। ध्यानअध्ययन के योग्य निर्दोष वसतिका मे ही साधु ठहरते हैं। वस्तुत्व-वस्तु के भाव को वस्तुत्व कहते है । वस्तु सामान्य-विशेषात्मक होती हे ओर प्रत्येक वस्तु मे अर्थ क्रियाकारीपना पाया जाता है। वाचना-निर्दोष ग्रन्थ, ग्रन्थ का अर्थ या दोनो ही योग्य-पात्र को प्रदान करना वाचना हे। अथवा शिष्यों को पढ़ाने का नाम वाचना हे । वाचना चार प्रकार की हे-नन्दा, जया, भद्रा और सौम्या-वाचना। वाचिक-विनय-पूज्य वचनो से वोलना, हित रूप बोलना, थोडा बोलना, मिष्ट बोलना, आगम के अनुसार बोलना, कठोरता-रहित वोलना तथा अभिमान रहित वचन बोलना वाचिक-विनय है। वातवलय-वृक्ष की त्वचा के समान समस्त लोक को घेरे हुए तीन 214 / जेनदर्शन पारिभाषिक कोश