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वक्ता-शास्त्र के उपदेश-कर्ता को वक्ता कहते है। अथवा जिनमे ध्वनि या वाणी रूप बोलने की क्षमता प्रगट हो जाती है ऐसे द्वीन्द्रिय से लेकर सज्ञी-पचेन्द्रिय तक सभी जीव वक्ता हैं। मोक्षमार्ग मे तीन ही वक्ता हे-सर्वज्ञ तीर्थकर या सामान्य केवली भगवान, श्रुतकेवली महाराज और परपरा-आचार्य। वचन-गुप्ति-पाप रूप असत्य वचनो का त्याग करना या मौन धारण करना वचन-गुप्ति है। वचन-शुद्धि-पीडादायक, कठोर या असभ्य-वचन नहीं बोलना तथा हित मित ओर मधुर-वचन बोलना वचनशुद्धि है। वचन-बल-ऋद्धि-जिस ऋद्धि के प्रभाव से साधु एक मुहूर्त मात्र काल के भीतर सपूर्ण श्रुत को सहज शुद्ध रूप से उच्चारण करने मे समर्थ होते हैं उसे वचन-बल-ऋद्धि कहते हैं।
वज्र-ऋषभ-नाराच-सहनन-जिस कर्म के उदय से शरीर मे वज्र के समान अभेद्य हड्डियो के ऊपर वज्र का ही वेष्ठन होता हे और हड्डिया परस्पर वज्रमय नाराच अर्थात् कील से जुडी होती हे ऐसा हड्डियो का सुदृढ बधन वज्र-ऋषभ-नाराच-सहनन कहलाता है। वज्रनाराच-सहनन-जिस कर्म के उदय से शरीर मे वज्रमय हड्डिया दोनो
ओर वज्रमय नाराच अर्थात् कील से जुडी होती है उसे वज्रनाराचसहनन कहते हैं। 212 / जेनदर्शन पारिभाषिक कोश