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समन्वित अर्हन्त भगवान का जो ध्यान किया जाता है उसे रूपस्थ-ध्यान कहते है ।
रूपातीत-ध्यान- रूपस्थ-ध्यान मे निष्णात योगी के द्वारा जो सिद्ध परमेष्ठी का या शुद्ध आत्मा का ध्यान किया जाता है वह रूपातीत ध्यान है ।
रोग - परीषह - जय - शरीर में एक साथ अनेक रोग हो जाने पर भी जो साधु उपचार की इच्छा नहीं करते और रोगजन्य पीडा को समता-पूर्वक सहन करते है उनके यह रोग - परीषह जय है ।
रोधन - अन्तराय - आहार चर्या के समय यदि साधु को किसी के द्वारा आहार का निषेध किया जाता है तो यह रोधन नाम का अतराय होता है ।
रौद्रध्यान - रुद्र का अर्थ क्रूर आशय हे । क्रूर आशय से किया गया कर्म रौद्र है। हिसा करने में आनन्द मानना, झूठ बोलने में आनन्द मानना, चोरी करने और परिग्रह जोडने मे आनन्द मानना रौद्रध्यान है । रौद्रध्यान चार प्रकार का है - हिसानदी, मृषानदी, चौर्यानदी और परिग्रहानदी ।
जैनदर्शन पारिभाषिक कोश / 207