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कोना पूर्ति दोष है । अथवा चूल्हा, ओखली, चम्मच, भोजन पकाने के वर्तन तथा सुगध युक्त द्रव्य-इन पाचो में ऐसा सकल्प करना कि इस चूल्हे आदि से वना भोजन जब तक साधु को न दे दे तव तक अन्य किसी को नहीं देगे यह पूति-दाप है ।
पूर्व - 1 जिसमे उत्पाद, व्यय ओर धोव्य आदि की प्ररूपणा की जाती हे उसे पूर्व कहते है । पूर्व के चोदह भेद प्रसिद्ध है । 2 यह काल का एक विशेष प्रमाण हे । चोरासी लाख वर्ष का एक पूर्वाग होता हे ओर चोरासी लाख पूर्वाग का एक पूर्व होता है ।
पूर्व - स्तुति - यदि साधु दाता के सामने उसकी स्तुति करके आहार ग्रहण करता है तो पूर्व- स्तुति नाम का दोष है ।
पृच्छना - ग्रंथ या ग्रथ के अर्थ के विषय मे सशय दूर करने के लिए या निर्णय की पुष्टि के लिए दूसरे से पूछना या प्रश्न करना पृच्छना नाम का स्वाध्याय हे ।
पृथक्त्व - 1 द्रव्य, गुण ओर पर्याय के भिन्नपन को पृथक्त्व कहते है । 2 पृथक्त्व यह आगमिक सज्ञा है। इसके द्वारा तीन से नो के मध्य की किसी सख्या का बोध होता है। जेसे-वर्ष - पृथक्त्व कहने पर तीन से नो वर्ष के वीच की अवधि का बोध होता है ।
पृथक्त्व - विक्रिया- अपने शरीर से भिन्न भवन, मडप आदि अनेक रूप धारण करने की सामर्थ्य होना पृथक्त्व - विक्रिया कहलाती है। यह देवी मे जन्म से पायी जाती है तथा मनुष्यों को तप व विद्या से प्राप्त होती है। पृथक्त्व-वितर्क- वीचार - इस ध्यान मे प्रवेश पाने वाले महामुनि समस्त रागादि विकल्पो से रहित होकर अनेक द्रव्यों का अलग-अलग 160 / जेनदर्शन पारिभाषिक कोश