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सापभाग है।
पुण्यानुवची पुण्य-पुण्य क उदय से पाप्न वृद्धि, काशल, निगंग शरीर आदि मताआ का पुण्याजन म लगा दना यह पुण्यानुवधी-पुण्य का उपमाग है। पुत्र-जा पिता क पवित्र आचरण का अनुसरण करक अपनं आपको ओर अपन वशा पवित्र को उमे पुत्र कहत है।
पुद्गल-जा पूग्ण आर गलन म्बमाव वाला ह वह पद्गल ह। अथवा जिमम म्प, ग्म, गध व स्पर्श य चारा गुण पाए जात है उस पुद्गल कहत ह । पुदगल क दो भद ह-कव व परमाणु।
पुद्गल-विपाफी-जिन कर्मों का विपाक अर्थात फल मुख्यत पुदगल स्प शरीर म होता ह व पुद्गल-विपाको कम ह । इनक निमित्त से जीव क शरीर आदि की सरचना हाती है।
पुराण-सठ शलाका पुरुपो के जीवन-चरित्र पर आधारित शास्त्र को पुराण कहत है। पुरुप-वेद-जिस कर्म क उदय से स्त्री के प्रति कामसंवन का भाव उत्पन्न हाता है वह पुरुषवेद हे।
पुरुपार्य-चेष्टा या पयत्न करना पुरुषार्थ है। धर्म, अर्थ, काम ओर मोक्ष-यह चार पकार का पुरुपार्थ कहा गया है। धर्म और मोक्ष पुरुपार्थ के द्वारा जीव मोक्ष प्राप्त करता है। धर्म से रहित अर्थ ओर काम पुरुषाथ मात्र ससार वढाने वाले है। 178 / जेनदशन पारिभाषिक काश