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परसमय-परसमय का अर्थ मिथ्यादृष्टि या वहिरात्मा हे । जो जीव कर्मोदय जनित मनुष्य आदि रूप पर्यायो मे लीन हैं उन्हे परसमय कहा गया है । अथवा जो जीव मिथ्यात्व कर्म के उदय से पर पदार्थो को निज रूप मानता है वह परसमय है ।
परावर्त-दोष - अपने साधारण चावल आदि दूसरे को देकर बदले मे दूसरे से वढिया चावल आदि लेकर साधु को आहार देना यह परावर्त नामक दोष है ।
परिकर्म-जिसमे गणित विषयक करण- सूत्र उपलब्ध होते हैं वह परिकर्म कहलाता है। परिकर्म के पाच भेद हैं- चन्द्रप्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति, जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति, द्वीप - सागर - प्रज्ञप्ति ओर व्याख्या - प्रज्ञप्ति । परिग्रह - 'यह मेरा है, मै इसका स्वामी हू', इस प्रकार का ममत्व भाव ही परिग्रह है । यह दो प्रकार का हे अतरग परिग्रह तथा वाह्य परिग्रह | रागादि रूप अतरग परिग्रह चौदह प्रकार का है - मिध्यात्व, चार कषाए और नो नो - कषाय । बाह्य वस्तुओ के ग्रहण व सग्रह रूप बाह्य परिग्रह दस प्रकार का है - क्षेत्र, वास्तु, धन, धान्य, द्विपद, चतुष्पद, यान, कुप्य (वस्त्र), भाड (वर्तन ) ओर शय्यासन ।
परिग्रह - त्याग - प्रतिमा - आरभ त्याग नामक आठवीं प्रतिमा धारण करने के उपरात देनिक उपयोग मे आने वाली वस्तुओ और पूजा के उपकरणो को छोडकर शेष समस्त परिग्रह का जीवन पर्यन्त के लिए त्याग कर देना, यह श्रावक की नौवी परिग्रह त्याग - प्रतिमा कहलाती है।
परिग्रह - परिमाणत - धन-धान्य आदि परिग्रह का परिमाण करके 150 / जैनदर्शन पारिभाषिक कोश