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हो, क्षमावान् हो, साधुओ की पूजा-अर्चना और सेवा मे तत्पर हो वह जीव पद्मलेश्या वाला है। ये सब पद्मलेश्या के लक्षण है। परघात-नामकर्म-जिस कर्म के उदय से शरीर मे दूसरे जीवो का घात करने मे निमित्त-भूत पुद्गल का सचय होता है उसे परघात-नामकर्म कहते है। जेसे सर्प की दाढो मे विष, बिच्छू का डक, सिह, चीता आदि मे तीक्ष्ण नख व दात; धतूरा आदि विषैले वृक्ष। परमर्षि-विश्वदृष्टा अर्हन्त भगवान परमर्षि कहलाते है। परमाणु-पुद्गल द्रव्य के अविभागी अश को परमाणु कहते है। परमाणु एक प्रदेशी होता है। सभी परमाणुओ मे स्पर्श, रस, गध व वर्ण आदि गुण पाए जाते है । परमाणु की उत्पत्ति स्कन्ध से होती है। परमात्मा-सर्व दोषो से रहित शुद्ध-आत्मा को परमात्मा कहते है। परमात्मा के दो भेद हैं-सकल-परमात्मा अर्थात् अर्हन्त भगवान और निकल-परमात्मा अर्थात् सिद्ध भगवान। परमार्थ-1 परम का अर्थ यहा मोक्ष है अत मोक्ष ही जिसका प्रयोजन हे वह परमार्थ हे। 2 जिसमे आत्म-हित और लोक-हित दोनो निहित हे वह परमार्थ कहलाता है। परमावगाढ़-सम्यग्दर्शन-केवलज्ञान के द्वारा प्रकाशित जीवादि पदार्थ-विषयक ज्ञान से जिनकी आत्मा विशुद्ध है वे परमावगाढ रुचि सम्यग्दृष्टि है। इनका सम्यग्दर्शन ही परमावगाढ-दर्शन है। परलोक-भय-'परभव मे न मालूम मेरा क्या होगा'-ऐसा भय होना परलोक-भय हे।
जैनदर्शन पारिभाषिक कोश / 149