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________________ नील- लेश्या - विषयो में आसक्त, मतिहीन, मानी, विवेकशून्य, मन्द, आलसी, कायर, प्रचुर माया प्रपच मे सलग्न, निद्रालु, लोभ से अध, धन-संपत्ति आदि सुख का इच्छुक और आहारादि सज्ञाओ मे आसक्त जीव नील लेश्या वाला है । ये सब नील लेश्या के लक्षण है । नेमिनाथ-बाइसवे तीर्थकर । ये यादववश के राजा समुद्रविजय के पुत्र थे। रानी शिवादेवी इनकी मा थीं। इनकी आयु एक हजार वर्ष थी । शरीर की ऊचाई दस धनुष और आभा नीलमणि के समान थी । अपने विवाह की तैयारी मे म्लेच्छ राजाओ के भोजन के लिए हरिणो का समूह बधन मे बधा देखकर वे विवाह किए बिना ही विरक्त हो गए ओर जिनदीक्षा ले ली। छप्पन दिन तक तपस्या करके केवलज्ञान प्राप्त किया। इनके समवसरण मे वरदत्त आदि ग्यारह गणधर, अठारह हजार मुनि, चालीस हजार आर्यिकाए, एक लाख श्रावक व तीन लाख श्राविकाए थीं। इन्होने गिरिनार ( उर्जयन्त) पर्वत से मोक्ष प्राप्त किया। इनका दूसरा नाम अरिष्टनेमी भी था । श्रीकृष्ण इनके चचेरे भाई थे । नैगमनय-निगम का अर्थ सकल्प है । अत अनिष्पन्न अर्थ मे सकल्प मात्र को ग्रहण करके कथन करने वाला नैगमनय है। आशय यह हे कि जो अभी उत्पन्न नहीं हुआ है भविष्य मे उत्पन्न होने वाला है ऐसे पदार्थ मे जो सकल्प मात्र को ग्रहण करता है उसे नैगमनय कहते हे। जैसे ईंधन, जल आदि लाते हुए किसी व्यक्ति से कोई पूछता हे कि आप क्या कर रहे है, तो वह कहता है कि भात पका रहा हू । उस समय भात पका नहीं है केवल भात पकाने का सकल्प किया गया है । इसलिए उसका यह कहना कि 'भात पका रहा हू' लोक-व्यवहार मे सत्य माना जाता है। इसी प्रकार जितना भी जैनदर्शन पारिभाषिक कोश / 145
SR No.010043
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherKshamasagar
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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