________________
देवमूढ़ता - वरदान पाने की आशा से रागी -द्वेषी देवी-देवताओ को सच्चे देव मानकर पूजा-अर्चना करना देवमूढता है ।
देवर्षि-आकाशगमन ऋद्धि से सम्पन्न साधु को देवर्षि कहते हैं। कामसेवन से रहित होने के कारण लोकान्तिक -देव भी देवर्षि कहलाते हैं।
देवावर्णवाद- 'स्वर्गलोक मे रहने वाले देवी-देवता सुरापान करते हैं और मास खाते है' - इस प्रकार देवगति के देवो पर मिथ्या आरोप लगाना यह देवावर्णवाद है ।
देशना-लब्धि - समीचीन धर्म का उपदेश देना देशना है । देशना देनेवाले आचार्य आदि की प्राप्ति होना तथा उपदिष्ट अर्थ के ग्रहण, धारण और विचारण की सामर्थ्य प्राप्त होना देशना - लब्धि कहलाती है।
देशव्रत - श्रावक के द्वारा दिग्व्रत मे जो आवागमन की सीमा की जाती है उसमे भी प्रतिदिन या चार माह आदि के लिए आवागमन की सीमा कम कर लेना देशव्रत कहलाता है ।
देशसत्य - नियत समय के लिए जो वचन अलग-अलग प्रान्त, नगर या ग्राम आदि मे प्रचलित होता है या विभिन्न भाषाओ मे बोला जाता है उसे देशसत्य कहते है । जैसे- भात को चोरू, कूल, भक्त आदि कहा जाता है ।
द्रव्य - गुण और पर्याय के समूह को द्रव्य कहते है या जो उत्पाद व्यय और ध्रीव्य से युक्त है उसे द्रव्य कहते हैं । द्रव्य छह हे - जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल ।
124 / जैनदर्शन पारिभाषिक कोश