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आधिका, पक श्रावक और एक श्राविका शेप रह जाते हैं। प्रथम ग्राग माग जाने पर मनिगज अन्तराव मानकर निराहार रह जाते है •और अवधितान के द्वारा परमफाल का अत जानकर चारा जीव ममाधिपूर्वक देह का त्याग कर देते है। असुर जाति के दव क्रोध म मरकर अतिम कल्की को समाप्त कर देते है। इस तरह पचमकाल पूर्ण हाता है। उत्सर्पिणी के इस द्वितीय काल के प्रारम में मनुष्यों की आयु बीस वर्ष और ऊचाई साढे तीन हाथ होती है, जो क्रम से उत्तरोत्तर बटती जाती है। इक्कीस हजार वर्ष पमाण इस द्वितीय काल के एक हजार वर्ष शेष रहने पर कुलकरी की उत्पत्ति होने लगती है। कुलकर मनुष्यों को अग्नि जलाने, अन्न पकाने आदि की प्रक्रिया सिखाते है और अतिम कुलकर के समय में विवाह आदि की पद्धति भी प्रचलित हो जाती है।
दुपमा दुपमा-अवसर्पिणी के छठवें और उत्सर्पिणी के प्रथम काल का नाम दुपमा-दुषमा है। अवसर्पिणी के इस छठे काल में मनुष्यो की अधिकतम आयु वीस वर्ष और ऊचाई साढे तीन हाथ रहती है। मनुष्यो का नेतिक पतन होने से वे पशुवत् आचरण करने लगते है। मनुष्य नग्न अवस्था मे वनो मे घूमते हुए अत्यन्त दीन-हीन, दरिद्र
ओर पीडित जीवन जीते है। इनकी आयु, वल, ऊचाई आदि सभी क्रमश हीन-हीन होते जाते है। इस छठे काल के अत मे अर्थात् उनचास दिन कम इक्कीस हजार वर्ष बीत जाने पर अत्यन्त भयानक प्रलय आती है। अत्यत शीतल जल, क्षार जल, विष, धुआ, धूलि, वज्र ओर अग्नि-ऐसी सात प्रकार की वृष्टि सात-सात दिन तक होने से यह प्रलय का क्रम उनचास दिन तक लगातार चलता है। इस 120 / जैनदर्शन पारिभाषिक कोश