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ज्ञान-कल्याणक - तीर्थकरो के केवलज्ञान के अवसर पर होने वाला उत्सव ज्ञान-कल्याणक कहलाता है । इस अवसर पर सोधर्म इन्द्र की आज्ञा से कुवेर समवसरण की रचना करता है जिसमे देव, मनुष्य और तिर्यंच जीव एक साथ बैठकर धर्मश्रवण करते है । तीर्थकर भगवान का विहार वडी धूमधाम से होता है। भगवान के श्रीचरणो मे देवगण तत्परता से सुवर्णमय कमलो की रचना करते जाते है । आगे-आगे धर्मचक्र चलता है । सारा मार्ग आठ दिव्य मगल द्रव्यो से
शोभित होता रहता है। ऋषि / मुनि भगवान के पीछे-पीछे चलते है । परस्पर विरोध रखने वाले जीव भी विरोध भूल जाते है । अत्यन्त सुखद और आत्मीय वातावरण निर्मित हो जाता है ।
ज्ञान-चेतना - केवलज्ञान रूप शुद्ध चेतना को ज्ञान- चेतना कहते है । ज्ञानदान - धर्म से अनभिज्ञ जीवो के लिए धर्म का उपदेश देना तथा आत्म-ज्ञान के साधनभूत शास्त्रादि सुपात्र को देना ज्ञानदान कहलाता है ।
ज्ञान- प्रवाद - जिसमे मति, श्रुत आदि पाच ज्ञानो और पाच इन्द्रियो के विभाग आदि का विस्तृत वर्णन किया गया है वह ज्ञान प्रवाद नाम का पाचवा पूर्व हे ।
ज्ञान- विनय - 1 सम्यग्ज्ञान को अत्यत सम्मान - पूर्वक ग्रहण करना, उसका अभ्यास करना ओर उसका स्मरण रखना ज्ञान- विनय है | 2 ज्ञान में, ज्ञान के उपकरण शास्त्र आदि मे एव ज्ञानवान् पुरुषो मे भक्ति और आदर भाव रखना तथा उनके अनुकूल आचरण करना ज्ञान-विनय है।
जनदर्शन पारिभाषिक कोश / 105