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कहते है। जैनदर्शन-जिसके द्वारा जीवन का ओर जीवन के विकास का ज्ञान प्राप्त किया जाए उसे दर्शन कहते है। जिनेन्द्र भगवान के द्वारा प्रतिपादित दर्शन ही जेनदर्शन हे। जैनदर्शन आत्मा, परमात्मा और पुनर्जन्म मे विश्वास करता है। जेनदर्शन के अनुसार आत्मा की परम-विशुद्ध अवस्था ही परमात्मा है जिसे प्रत्येक आत्मा अपने आत्म-पुरुषार्थ के द्वारा प्राप्त कर सकता है। जैनाचार-जिनेन्द्र भगवान के द्वारा जो श्रावक और साधु के योग्य आचरण का उपदेश दिया गया है वह जैनाचार हे। जैनाचार का मूल आधार अहिसा है। ज्ञात-भाव-'इसे मारना है, या इसे बचाना है'-इस प्रकार जानबूझकर प्रवृत्ति करना ज्ञात-भाव है। ज्ञातृधर्मकथाङ्ग-जिसमे अनेक आख्यान ओर उपाख्यानो का वर्णन है वह ज्ञातृधर्मकथाङ्ग है। ज्ञान-जो जानता है वह ज्ञान है या जिसके द्वारा जाना जाए वह ज्ञान है। या जानना मात्र ही ज्ञान है। ज्ञान जीव का विशेष गुण है। सम्यग्दर्शन के सद्भाव में यह सम्यग्ज्ञान कहलाता हे और मिथ्यात्व के उदय मे यह मिथ्याज्ञान हो जाता है। मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मन पर्ययज्ञान और केवलज्ञान ये पाच सम्यग्ज्ञान के भेद है। कुमति, कुश्रुत और विभग-अवधिज्ञान ये तीन मिथ्याज्ञान है। इस प्रकार ज्ञानोपयोग के आठ भेद हैं। ज्ञान स्व-पर प्रकाशक होता
104 / जेनदर्शन पारिभाषिक कोश