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________________ ज जङ्घाचारण-ऋद्धि-जिस ऋद्धि के प्रभाव से साधु पृथिवी से चार अगुल ऊपर आकाश में घुटनो को मोडे विना गमन करने में समर्थ होते हे वह जङ्घाचारण ऋद्धि कहलाती है। जन्तु-वध- साधु के आहार करते समय किसी जीव-जन्तु आदि का घात हो जाने पर जन्तु-वध नाम का अन्तराय होता है । जन्म-जीव के नवीन शरीर की उत्पत्ति होना जन्म कहलाता है । जीवो का जन्म तीन प्रकार से होता है - गर्भ जन्म, सम्मूर्छन - जन्म और उपपाद-जन्म | जन्म-कल्याणक - तीर्थकर के जन्म का उत्सव जन्मकल्याणक कहलाता है । इस अवसर पर सोधर्म इन्द्र आदि सभी इन्द्र व देवगण भगवान का जन्मोत्सव मनाने बडी धूमधाम से पृथिवी पर आते है । कुवेर नगर की अद्भुत शोभा करता है । सौधर्म इन्द्र की आज्ञा से इन्द्राणी भगवान की माता को मायामयी निद्रा में सुलाकर बालक भगवान को लाती है ओर इन्द्र की गोद मे देती हे । ऐरावत हाथी पर भगवान को लेकर इन्द्र सुमेरु पर्वत की ओर जाता है । वहा पहुचकर पाडुक शिला पर भगवान को विराजमान करके क्षीर समुद्र से लाए गए जल के द्वारा एक हजार आठ कलशो से अभिषेक करता हे फिर बालक भगवान को दिव्य वस्त्राभूषणो से अलकृत कर उत्सवपूर्वक नगर मे लौट आता है। इस अवसर पर इन्द्र भक्ति-भाव से नृत्य आदि विभिन्न आश्चर्यजनक लीलाए करता है । जैनदर्शन पारिभाषिक कोश / १५
SR No.010043
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherKshamasagar
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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