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________________ जैन बौद्ध तत्वज्ञान। [५३ पैशून्यहासगर्भ कर्कशमसमञ्जस प्रलपित च । अन्यदपि यदुत्सूत्र तत्सर्व गाईत गदितम् ।। ९६ ॥ भावार्थ-जो वचन चुगलीरूप हो, हास्यरूप हो, कर्कश हो, मुक्ति सहित न हो, बकवादरूप हो या शास्त्र विरुद्ध कोई भी वचन हो उसे गर्हित कहा गया है। छेदनभेदनमारणकर्षणवाणिज्यचौर्यवचनादि । तत्सावध यस्मात्प्राणिवाद्या प्रवर्तन्ते ।। ९७ ।। भावार्थ-जो वचन छेदन, भेदन, मारन, खींचनेकी तरफ या व्यापारकी तरफ या चोरी मादिकी तरफ प्रेरणा करनेवाले हों वे सब सावध वचन है, क्योंकि इनसे प्राणियोंको वध आदि कष्ट पहुंचता है। मरतिकर भीतिकर खेदकर धैरशोककलहकरम् । यदपरमपि तापकर परस्य तत्सर्वमप्रिय ज्ञेयम् ॥ ९८ ॥ भावार्थ-जो वचन भरति, भय, खेद, वैर, शोक, कलह पैवा करे व ऐसे कोई भी वचन जो मनमे ताप या दु ख उत्पन्न करे वह सर्व अप्रिय वचन जानना चाहिये ।। पवितीर्णस्य ग्रहण परिग्रहस्य प्रमत्तयोगाद्यत् । तत्प्रत्येय स्तेय सैव च हिंसा वधस्य हेतुत्वात् ।। १०२ ॥ भावार्थ-कषाय सहित मन, वचन, कायके द्वारा जो बिना दी हुई वस्तुका ले लेना सो चोरी जानना चाहिये, यही हिंसा है। क्योंकि इससे प्राणोंको कष्ट पहुचाना है। यदिरागयोगान्मैथुनमभिधीयते तदब्रह्म । अवतरति तत्र हिंसा वधस्य सर्वत्र सद्भावात् ॥ १०७ ॥ भावार्थ-जो कामभावके राग सहित मन, वचन, कायके द्वारा
SR No.010041
Book TitleJain Bauddh Tattvagyana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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