________________
जैन बौद्ध तत्वज्ञान।
[१५ फिर वितक व विचार बद होनेपर प्रीति व सुख सहित भाव रह जावे यह दुसरा ध्यान है । (३) फिर प्रीति सम्बधी राग चला जाव वैराग्य बढ जावे निर्वाण मानके स्मरण सहित सुखका अनुभव हो सो तीसरा ध्यान है । (४) वैराग्यकी वृद्धिसे शुद्ध व एकाग्र स्मरण हो सो चौथा ध्यान है। ये चार ध्यानकी श्रेणिया हैं जिनको गौतमबुद्धने प्राप्त किया । इसी प्रकार जैन सिद्धातमे सरागध्यान व वीतराग व्यानका वर्णन किया है। जितना जितना राग घटता है ध्यान निर्मल होता जाता है।
फिर यह बताया है कि इस समाघियुक्त ध्यानसे व आत्म सयमी होनेसे गौतमबुद्धको अपने पूर्व भव स्मरणमे आए फिर दुसरे प्राणियोंके जन्म मरण व कर्तव्य स्मरणमें आए कि मिथ्या दृष्टी जीव मन वचन कायके दुराचारसे नर्क गया व सम्यग्दृष्टी जीव मन वचन कायके सुभाचार से स्वर्ग गया। यहा मिथ्यादृष्टी शब्द के साथ कर्म शब्द लगा है । जिसके अर्थ जैन सिद्धान्तानुसार मिथ्यात्व कर्म भी होसक्ते है । जैन सिद्धातमें कर्म पुद्गलके स्कध लोकव्यापी है उनको यह जीव जब खींचकर बाधता है तब उनमें कर्मका स्वभाव पडता है । मिथ्यात्व मावसे मिथ्यात्व कर्म बंध जाता है । तथा सम्यक्त कर्म भी है जो श्रद्धाको निर्मक नहीं रखता है। इस अपने व दुसरोंके पूर्वकालके स्मरणोंकी शक्तिको अवधि ज्ञान नामका दिव्य ज्ञान जैन सिद्धातने माना है। फिर बुद्ध कहते हैं कि जब मैंने दुख दुखक कारणको व आस्रव व आस्रवके कारणको, दुल व भास्रव निरोधको तथा दु ख व आस्रव निरोधके साधनको मले प्रकार जान लिया तब मैं सर्व इच्छामोंसे, जन्म