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२३६] दूसरा भाग। बहुत ही सुदर वर्णन किया है बहुन सूक्ष्म हष्ट मे उम मत्रका मना करना योग्य है। इस सूत्रमें नीचे प्रकार की बातों को बताया है
(१) सर्व समार भ्रमणका मूल आण पचों इन्द्रियों के विष योंके से उत्पन्न हुआ विज्ञान है नया इन्द्रियों के प्राप्त ज्ञान जा अनेक प्रकार म में विला होता है सो मनोविज्ञान है । इन छद्दों प्रा. के विज्ञानका क्षय ही निर्वाण है।
(२) रूप, वेदना, सज्ञा, संस्कार, विज्ञान ये पाच स्कथ ही ससार है। एक दुसरे का कारण है । रूप जड है, पाच चेतन है। इपीको Matter and Mind कह सक्ते हैं। इन मन विवश रूप या ना में विसई वदना आदिकी उत्पत्तिका मूल कारण रूपों का प्रक्षण है। य उत्पन्न होनेवाले हैं, नाश होनेवाले है, पराधीन है।
(३) ये पाचों स्कंध उन प्र वसी है। भाने नहीं ऐसा ठीक ठीक जानना, विश्वास करना सम्यग्दर्शन है। जिस किसीका यह श्रद्धा होगो कि ससारका मूल कारण विषयोंका राग है, यह राग त्यागने योग्य है वही सम्यग्दृष्टि है। यही माशय जैन सिद्धातका है। सापारिक अ सबक कारण भाव तत्वार्थसूत्र छठे अध्याय इन्द्रिय, कपाय, अव्रतको कहा है। भाव यह है कि पा! इन्द्रियों द्वारा ग्रहण किये हुए विषयों में गर द्वेष होता है, का क्रोध, मान, म या रोभ प ये जागृत होनाती हैं। कषयोंक माधीन हो हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील, परिग्रह प्रक्षण इन पाच भवतोंको करता है । इस म सबका श्रद्धान सम्यग्दर्शन है।