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________________ २३- ] दूसरा भाग । AAVANW सभ्य बहुजन काता-बहुजन मन्या है, नेमी वाणोका बोलनेवाला होता है | मलापको छोड़ प्रकामे विग्ल होता है । समय देखकर बोलबाला यथार्थवादी धर्मवादी जनवादी हो तात्पर्य युक्त, फ्ल्युक्त सार्थक, सान्युक्त वाण का बोलमेवाला होता है । ! वह बीज समुदाय, भूत समुदाय विशिम वि व होता है एकाहारी, रातका उपरत ( रानको नवाने का ), त्रिकाल ( मध्य होत्तर ) भोजनमे विस्त होता है । माला, गध, विलेपनके भाग्ण मडन विभुषणमे वि तो है। उच्चशयन और महाशयन से विग्त होता है। सो बादी लेनसे किस होता है । कच्चा अनाज बादि लेनसे विरत होता | स्त्री कुमरी, दासीदास, मेड़बकरी, मुर्गी सूकर, हाथी गाय, घोड़ा घडो खेत घर नसे वित होता है । दुल बनकर जानेसे विरत होता है । क्रय विक्रय करने से विरत होता है । तगजुकी ठगो, कामेकी ठगी, मान (तौल) की उगीसे विग्न होता है । घूम, बचना, जालसाजी कुटिलयोग, छेदन, वध, बधन छापा मान्ने, ग्रामादिक विनाश करने, जाल डालनेसे विरत होता है । वह शरीर वस्त्र व पेट से संतुष्ट हत है। वह जहा जहा जाता है अपना सामान लिये ही जाता है जैसे कि क्षो जहां वहीं उड़ना है अपने पक्ष मारक साथ ही उड़ना है । इसी प्रकार भिक्षु शरी के वस्त्र और पेट खाने से सतुष्ट होता है, वह इस प्रकार आर्य ( नित्र ) शील+व ( सदाचार समूह ) से मुक हो, भने भीतर निर्मल सुखको अनुभव करता है ।
SR No.010041
Book TitleJain Bauddh Tattvagyana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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