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(२६) लेखककी प्रशस्ति (२७) बौद्ध जैन शब्द समानता
(२८) जैन प्रन्थोंके श्लोकादिकी सूची, जो इस ग्रन्थ में है
शुद्धिपत्र |
पृ०
४
१२
१२
१४ १७
१८
१५
१९
fo
१९
२०
२०
२३
२५
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ला०
१९
१४
३८
३
२६ ६
३२
१४
३५
३५
३७
४१
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६
७
२३
१२
१६
(१८)
३
अशुद्ध सर्व नय
उत्पन्न भव
सेवासव
अज्ञान रोग
प्रीि
मुक्त
मुक्त
मुक्त
तिच
जिससे
मान
न कि
हमने
विप्प
कर
मुक्त
निस्सण
निर्मक
शुद्ध सर्व रूप
उत्पन्न भव अ स्रव बढ़ता है
सर्वा
अज्ञान होने
प्रीति
युक्त
युक्त
युक्त
चित्त
जिसे
भाव
जिससे
इसने
२५२
२५६
२५६
वियय्य
करे
युक्त
निस्सरण
निर्बक