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________________ जैन बौद्ध तत्वज्ञान । [१७७ ते साधकत्वमधिगम्य भवन्ति सिद्धा । मूढास्त्वमूमनुपट-परिभ्रमन्ति ॥ २०-११ ॥ भावार्थ-जो ज्ञानी सर्व प्रकार मोहको दुर करके ज्ञानमयी मपनी निश्चल भूमिका आश्रय लेते है वे मोक्षमार्गको प्राप्त होकर सिद्ध परमात्मा होजाते है, परन्तु अज्ञानी इस शुद्धात्मीक भावको न प कर ससारमे भ्रमण करते है। तत्वार्थसारमें कहने हैमकामनिर्जरा बाटतपो भन्दकषायता । सुधर्मश्रवण दान तथायत सेवनम् ॥ ४२-४ ॥ सरागसयमश्चैव समक्तव देशसयम । इति देवायुषो ह्यते भवन्त्यास्रबहेतव ॥ ४३-४ ॥ भावार्थ-देव अ यु बावकर देवगति पान के कारण ये है(१) मकाम निर्जरा-शातिसे कष्ट भोग लेना (२) बालतर-भ मा नुभव रहित इच्छाको गेजना, (३) म द कषाय क्रोधादिकी बहुत कमी, (४) धर्मानुराग रहित भिक्षुका चारित्र पालना, (५) गृहस्थ श्रावकका सयम पालना, (६) म. दर्शन मात्र होना । सार समुच्चयमें कहा है। आत्मान स्नापयेन्नित्य ज्ञ नन रेण चारुमा । ! येन निमळता य/ति जीवो न्म तारू पि ॥ ३.१४ ॥ , भावार्थ-अपनेको सदा पवित्र ज्ञानरूपी जलसे स्नान कराना चाहिये । इसी स्नानसे यह जीव जन्म ज मके “मलसे छूटकर पवित्र होजाता है।
SR No.010041
Book TitleJain Bauddh Tattvagyana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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