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________________ जैन बौद्ध तत्वज्ञान | [ १७३ होनचा त्रिकाल सम्बन्धी वेदना, सज्ञा सस्कार व विज्ञानको अपना नहीं मानता है । जो मै परसे भिन्न हु एसा अनुभव करता है वही ज्ञानी है, वही ससार रहित मुक्त होजाता है । (६) फिर इस सूत्र में बताया है कि जो बुद्धको नास्तिक वादका या सर्वथा सत्यके नाशका उपदेशदाता मानते हैं सो मिथ्या है । बुद्ध कहते है कि मैं ऐसा नहीं कहता । मै तो ससारक दु खोकनाशका उपदेश देता हू | (७) फिर यह बताया है कि जैना मै निन्दा व प्रशसा में समभाव रखता हू व शोकित व आनंदित नहीं होता हू वैसा भिक्षु ओंको भी निंदा व प्रशसा में समभाव रखना चाहिये । (८) फिर यह बताया है कि जो तुम्हारा नहीं है उसे छोड़ो। रूपादि विज्ञान तक तुम्हारा नहीं है इसे छोडो। यही स्वाख्यात भप्रकार कहा हुआ ) धर्म है । (९) फिर यह बताया है कि जो स्वाख्यात धर्मपर चलते हैं वे नीचे प्रकार अवस्थाओंको यथासभव पाते है (१) क्षीणात्र हो मुक्त होजाते है, (२) देव गतिमें जाकर अनागामी होजाते है वहीं से मुक्ति पालेते है, (३) देवगतिले एक बार ही यहा आकर मुक्त होंगे, उनको सकृदागामी कहते है, (४) - स्रोतापन्न होजाते हैं, ससार सम्बन्धी रागद्वष मोह नाश करके सबोधि परायण ज्ञानी होजाते हैं, ऐसे भी श्रद्धा मात्र से स्वामी है । जैन सिद्धातमें भी बताया है जो मात्र अविरत सम्यग्दृष्टी हैं, चारित्र रहित सत्य स्वाख्यात धर्मके श्रद्धावान है सच्चे प्रेमी हैं,
SR No.010041
Book TitleJain Bauddh Tattvagyana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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