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________________ १६२] दूसरा भाग। कवेपर रखकर जहा इच्छा हो वहा जाऊ तो क्या ऐसा करनेवाला इस बडेमे कर्तव्य पालनेवाला हो रहीं। रितु पह उस बेटेसे दुख उठाने वाला होगा। प. तु यदि त पुरुषको ए - क्या न में इस बेडेको र र रख ६२ या पानीमें डालकर जहा इच्छा हो वहा जाऊ तो भिक्षुओ ! ऐसा करनेवाला पुरुष उस बेड़े के सम्बन्धमें कर्तव्य पालनेवाला होगा। ऐसे ही भिक्षुओ ! मैने बेडेकी भाति विस्तरणके लिये तुम्हें धर्मोको उपदेशा है, पकड रखनेके लिये नही । धर्म का बेडे समान ( कुल्लूगम ) उपदेश जानकर तुम धमको भी छोड दो अधर्मकी तो बात ही क्या ? भिक्षुओ ! ये छः दृष्टि-स्थान है। आर्यधर्मसे अज्ञानी पुरुष रूप (Matter) को यह मेरा है' 'यह मै हूँ' 'यह मेरा आत्मा है' इस प्रकार समझता है इसो तर (२) वेदनाको, (३) सज्ञाको (४) सस्कारको, (५) विज्ञानको, (६) जो कुछ भी यह देखा, सुना, याद में आया, ज्ञात, प्राप्त, पोषित (खोजा), और मन द्वारा अनुविचारित (पद र्थ) है उस भी यह मग है। यह मै हू' 'यह मा आत्मा है' इस प्रकार समझता है । जो यह (छ) दृष्टि स्थान हे सो लोक है मोई मारमा है, मै मरकर सोई नित्य, ध्रव, शाश्वत, निर्विकार (अविरिणाम धर्मा, आत्मा होऊँगा और अनन्त तक वैसा ही स्थित रहूगा । इम भी यह मेरा है यह मै हू' यह मेरा आत्मा' है इस प्रकार समझता है । पर तु भिक्षुओ । आर्य धर्मस परिचित् ज्ञनी मार्य श्रावक (१) रूपको 'यह मेरा नही' 'यह मै नही हू' 'यह मेरा आत्मा
SR No.010041
Book TitleJain Bauddh Tattvagyana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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