________________
जैन बौद्ध तत्वज्ञान ।
[ १४७ भोजन शुद्ध व दोष रहित लेवे । (५) सधर्माविसवाद-स्वधर्मी जनसे झगडा न करे, इससे सत्य धर्मका लोप होता है ।
(४) कुशीलसे बचनेकी पाच भावनाए
श्रीरामकथाश्रवणतन्मनोहरराङ्ग निरीक्षणपूर्व र तानुस्मरणवृष्येष्टा सस्त्रशरीरसस्कारत्यागा पञ्च ॥ ७-७ ॥
(१) स्त्रीरागकथाश्रवण त्याग - स्त्रियोंमें राग बढानेवाली कथा सुनने का त्याग, (२) तन्मनोहरांगनिरीक्षण त्याग- स्त्रियोंके मनोहर अङ्गको राग सहित देखने का त्याग, (३) पूर्वरतानुस्मरण स्याग - पहले भोगोंके स्मरणका त्याग, (४) वृष्येष्टरस त्याग - कामोद्दीपक इष्ट रस खानेका त्याग, (५) स्वशरीर सस्कार त्याग - अपने शरीर के शृगार करनेका त्याग ।
1
(५) परिग्रहसे बचनेकी पाच भावनाए -ममता त्यागकी
भावनाए
---
" मनोज्ञ मनोज्ञ विषय रागद्वेषवज्र्जनानि पच ।
"
अच्छे या बुरे पाच इन्द्रियोंके पदार्थों में राग व द्वेष नहीं करना । जो कुछ खानपान स्थान व सयोग प्राप्त हो उनमें संतोष रखना । इन्द्रियोंकी तृष्णाको मिटानेका यही उपाय 1
सार समुच्चयम कहा है
ममत्वाज्जायते लोभो लोभाद्रागश्च जायते । रागाच्च जायते द्वषो द्वेषाद्दु. खपरपरा ॥ २३३ ॥ निर्ममत्व पर तत्व निर्ममत्व पर सुख । निर्ममत्वं पर बीज मोक्षस्य कथित बुबै ॥ २३४ ॥