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________________ हिन्दी - जैनसाहित्य - परिशीलन नल परिस्थितिवश या पूर्वोपार्जित अशुभ कर्मानुसार द्यूतक्रीडामे रत हो जाता है और स्त्री सहित सब कुछ हार जाता है । राज-पाट छोड़कर नल वनको चल देता है और दमयन्ती पातित्रत धर्मके अनुसार उसका अनुसरण करती है । कूबड़ उसकी भर्त्सना करता है, किन्तु सतीत्वकी विजय होती है | नल बनमे दमयन्तीको सोती हुई छोड देता है और स्वय चला जाता है । निद्रा भंग होनेपर वह अपने अंचलमे लिखे लेखको पढ़ती है और उसीके अनुसार मार्गपर चल पड़ती है । मार्गम अनेक अघटित घटनाएँ घटित होती है, जिनके द्वारा उसका नारीत्व निखरता जाता है। अन्तमे चन्द्रयशा मौसीके यहाँसे पिता के घर पहुँच जाती है और इधर इसी नगरीमें नल आता है । सूर्यपाक बनाता है, दमयन्ती अपने पतिको पहचान लेती है और बारह वर्षके पश्चात् दोनोका मिलन होता है । नल दमयन्तीको अपनी यक्ष सम्बन्धी कथा सुनाता है । भापा, शैली और कथा - विस्तारकी दृष्टिसे इसमे नवीनता होनेपर भी कुछ ऐसी अलौकिक घटनाऍ है, जो आजके युगमें अविश्वसनीय मालूम पड़ेगी। उदाहरणार्थ सतीके तेजसे शुल्क सरोवरका जल परिपूर्ण होना, कैदीकी बेड़ियाँ टूटना और डाकुओका भाग जाना आदि । चरित्र - चित्रणमे इस कृतिमै लेखकने पौराणिकताको पूर्ण रूपसे अपनाया है, यही कारण है कि दमयन्तीका चरित्र अलौकिक और अमानवीय वन गया है । भाषा सरल और मुहावरेदार है, रोचकता और उत्सुकता आद्योपान्त विद्यमान है । 4. इस पौराणिक कथाके लेखक भागमल शर्मा है। इसमे पुण्य-पापका फल दिखलाया गया है । मनुष्य परिस्थितियों और वातावरणके अनुसार किस प्रकार नीचसे नीच और उच्चसे उच्च कार्य कर सकता है । प्रतिकूल परिस्थिति और वातावरणके रह रूपसुन्दरी नेपर जो व्यक्ति जघन्य कृत्य करता हुआ देखा जाता है, वही अनुकुल १. प्रकाशक -- आत्मानन्द जैन ट्रैक्ट सोसाइटी, अम्बाला शहर |
SR No.010039
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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