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कथा-साहित्य
हैं। इन कहानियोंमें कहानीपनकी मात्रा इतनी अधिक है कि हजारों वर्षसे, न जाने कहनेवालोंने इन्हें कितने ढंगसे और कितनी प्रकारकी भाषामें कहा है फिरभी इनका रसबोध-ज्योंका त्यों बना है। साधारणतः लोगोका विश्वास है कि जैन साहित्य बहुत नीरस है। इन कहा. नियोको चुनकर डॉ. जैनने यह दिखा दिया है कि जैनाचार्य भी अपने गहन तत्वविचारोंको सरस करके कहने में अपने ब्राह्मण और बौद्ध साथियोंसे किसी प्रकार पीछे नहीं रहे है। सही बात तो यह है कि जैन पंडितोंने अनेक कथा और प्रवन्धकी पुस्तकें बड़ी सहज भापामें लिखी हैं।" __इस संग्रहकी कहानियाँ सरस और रोचक है । डा. जगदीशचन्द्र जैन
ने पुरातन कहानियोंको ज्योका त्यो लिखा है, कहानी कलाकी दृष्टिसे , चमत्कारपूर्ण दृश्य योजना और कथोपकथनको प्रभावक बनानेकी चेष्टा . नहीं की है । अतएव सग्रह भी एक प्रकारसे अनुवाद मात्र है। ' पुरातन कथानकोको लेकर श्री बाबू कृष्णलाल वर्माने स्वतन्त्ररूपसे
कुछ कथाएँ लिखी है। इन कथाओंमें कहानी-कला विद्यमान है। इनमे वस्तु, पात्र और दृष्य ( Background or Atmosphere) ये तीनो मुख्य अङ्ग संतुलित रूपमे हैं। सरलता, मनोरजकता और हृदय स्पर्शिता आदि गुणोका समावेश भी यथेष्ट रूपमे किया गया है। नीचे आपकी कतिपय कथाओका विवेचन किया जाता है।
यह कहानी बड़ी ही मर्मस्पर्शी है। इसमें एक और मोहाभिभूत प्राणियोके अत्याचार उमड़-घुमड़कर अपनी पराकाष्ठा दिखलाते हुए दृष्टिखनककुमार ही गोचर होते हैं, तो दूसरी ओर सहनशीलता और
क्षमाकी अपरिमित शक्ति। आज, जब कि आचार और धर्म एक खिलवाड़ और ढकोसला समझे जा रहे हैं, यह कहानी अत्यन्त उपादेय है।
१. प्रकाशक-आत्मानन्द जैन ट्रैक्ट सोसाइटी, अंबाला शहर।