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हिन्दी - जैन साहित्य-परिशीलन
जैनेन्द्र किशोर-नाटककार और कविके रूपमे आरानिवासी बाबू जैनेन्द्रकिशोर प्रसिद्ध है । इनका जन्म भाद्रपद शुक्ला अष्टमी संवत् १९२८ में हुआ था । इनके पिताका नाम बाबू नन्दकिशोर और माताका नाम किसमिसदेवी था । यह अग्रवाल थे । थारा नागरी प्रचारिणी समाके संस्थापक और काशी नागरी प्रचारिणी समाके सदस्य थे । इन्होंने अंग्रेजी और उर्दूकी शिक्षा प्राप्त की थी। इनमें कविताकी शक्ति जन्मनात थी । नौ वर्षकी अवस्थामें इन्होने सम्मेदशिखरकी वर्णनात्मक न्तुति लिखी थी । इन्होंने अपने साहित्यगुरु श्री किशोरीलाल गोत्वामीकी प्रेरणासे ही 'भारतवर्ष' पत्रिकामं सर्वप्रथम 'केन्याविहार' नामक नाटक प्रकाश्चित कराया । उपन्यास और नाटक रचनेकी योग्यता एवं उर्दू शायरीकी प्रतिभा इन दोनोंका मणिकाञ्चन सयोग हिन्दी कविताके साथ इनके व्यक्तित्वमें निहित था । इनके उर्दू शायरीके गुरु मौलवी 'फजल' थे । मुशायरोंमें इनकी उर्दू शायरीकी धूम मच जाती थी । इन्होंने लेखक और कविके अतिरिक्त भी अपनी सर्वतोमुखी प्रतिमाकै कारण 'जैन गजट' और 'नागरी प्रचारिणी पत्रिका' के सुयोग्य संपादक, साइाद विद्यालय काशी के मन्त्री; 'हिन्दी सिद्धान्त प्रकाश में उर्दूका इतिहास लिखनेके पूर्ण सहयोगी एवं 'जैन यंग एसोशियेशन के शान्तिक मन्त्री आदिके कार्यभारका बहन बड़ी सफलता के साथ किया था।
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इन कार्योंके अतिरिक्त आपने सन् १८९७ में 'हैन नाटकमण्डली' की स्थापना की थी । कलिकौतुक, मनोरम्ग, अंजना, श्रीपाल, प्रचुन्न आदि आपके द्वारा रचित नाटक तथा सोमारती, द्रौपदी और कृपणदास आदि आपके द्वारा लिखित प्रहसनोका सुन्दर अभिनय कई बार हुआ था | उपन्यासों में इनकी निन्न रचनाएँ प्रसिद्ध हैं
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१. मनोरमा २. कमलिनी : सुकुम्बल ४. गुलेनार ५ दुर्दन ६. मनोत्रती ।
० शीतलप्रसाद ब्रह्मचारीजीका जन्म सन् १८७९ ई० में
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